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लगता है!

सब अधूरा लगता है  क्या कोई ख्वाब पूरा लगता है  हाल-ए-दिल है कुछ और ,बोलता हूँ कुछ और  मुझे अब ये नया "मैं" अच्छा लगता है चल रही है ज़िंदगी शामों की तरह  और तुम मिल रही हो अनजानों की तरह  मुझमें कुछ खो गया है  जो शायद तुम्हें अच्छा लगता है  जिस तरह मौसम होते हैं जुदा  उसी तरह रहना मेरे दिल मैं तुम, जान-ए-खुदा  मुझे तुम्हारा ये फरेब  अपने सच से अच्छा लगता है  अब रात होने को आई है  और शायद जुदाई की खबर लाई है  मेरे मुंह से ही न निकले ये बात, तो ठीक  तुम्हारे होंठों से तो ज़हर भी अच्छा लगता है                                                                    __ "शिनाख्त: नशे में"