प्रेम का अर्थ
प्रेम का अर्थ -
न पाना , बल्कि निभाना
सिर्फ शारीरिक सुख नहीं,
इसके आगे हैं काफी प्रेम
है अगर सिर्फ पाना , प्रेम का अर्थ
तो शायद है वो शरीर की चाह
है अगर निभाना , प्रेम का अर्थ
तो है वो जन्नत की राह
लेकिन बुराई नहीं शारीरिक सुख में
न ही कोई उसके दुख में
लेकिन फिर वो प्रेम नहीं,
कुछ और है , सिर्फ जीवनी की डोर है
व्यक्ति की पराकाष्ठा है कि
भागता है सूक्ष्म खुशी के लिए
और फिर रोता है बाद में
हर भूली खुशी के लिए
अगर है कोई ऐसा रिश्ता
जो सिर्फ पाना चाहे, निभाना नहीं
तो उसे छोड़ना अच्छा ,
जो तार मंजिल में बाधा बने
तो उसे तोड़ना अच्छा
- शिनाख्त
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