खोया हुआ मैं

पता नहीं किस ख़याल में खो गया हूँ,
मैं, मैं नहीं रहा, यूँ ही हो गया हूँ।
दिन ढलते-ढलते आँख नम हो गई मेरी,
आँसू न निकल पाए, दिल से रो गया हूँ।

तक़दीर के हाथों की बनावट हूँ,
न याद आए ऐसी पुरानी कहावत हूँ।
ख़ुद के ऊपर हूँ या लोगों के ऊपर, बोझ,
कुछ नहीं, बस ख़ुद ही ख़ुद की इबादत हूँ।

रास्ते तंग हैं, ज़िंदगी बेरंग है,
हालात जंग हैं, कब तक लोग संग हैं?
बस जिए जाना एक व्यंग्य है,
ये भी ज़िंदगी का एक अंग है।

अब कैसे करूँ कुछ बातें बयां मैं,
अब कुछ नहीं बचा मेरे ही दरमियां मैं।
लेकिन बची है एक आस, और भी बची है साँस,
जितना कर पाऊँ, उतना करूँ इसी हवा में।

एक अरसे पहले जिस दौर से गुज़रा था,
आज उस दौर से फिर गुज़रना है।
पिछली बार ज़िंदा बच गया काफ़ी,
इस बार तो डूब कर मरना है।

जैसे तैर कर लोग डूब जाते हैं,
वैसे ही तैरने वाले लोग उब जाते हैं।
ऊपरवाले जो चाहेंगे, होगा वही,
थोड़ा अच्छा करें लोग, थोड़ा हम कर आते हैं।

पर इस जंग में लड़ना नहीं मन से,
एक वही है जो देता साथ ज़्यादा धन से।
चलेंगे तो कुछ-कुछ हो ही जाएगा,
और बस चलते ही जाना है हर मन से।
                                                     - शिनाख्त 

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