आत्मविश्वास
क्यों भरोसा नहीं खुद पर
क्यों ढूँढ़ता दूसरों की आँखों पर
क्यों तू रहता हमेशा सहमा सा
क्यों नहीं रखता खुद को थोड़ा ऊपर
क्यों नहीं सोचता खुद का
क्यों नहीं मानता खुद की
क्यों झूलता लोगों की बातों पर
क्यों नहीं सोचता अपने खुश की
हर बात को इतना गहरा क्यों लेना
हर ज़ख्म को इतना क्यों सहना
बात सीधी सी है, शायद सच भी हो
हर बात पर कभी इतना परेशान न रहना
कुछ हो ही जाएगा ये भरोसा रख
लोगों पर थोड़ा भरोसा रख
उससे थोड़ा ज़्यादा खुद पर रख
और सबसे ज़्यादा मुझ पर रख
कैसे रख लूँ भरोसा जब कुछ है ही नहीं
किस पर कर लूँ भरोसा अगर कोई है ही नहीं
कैसे बात मान लूँ तेरी चाहे हो सच
ऐसी बात मानने के लिए कुछ है ही नहीं
तू खींच कर रख ले भरोसा ये
आँख बंद करके विश्वास कर ले इसे
आँख खोलकर भी कौन सा तीर चलाया तूने
मेरी एक बात मान भी ले
क्योंकि भरोसा रख एक दिन सब ये छूट जाना है
तेरे साथ बस तू ही काम आना है
जिन लोगों से तोलता खुद को
उन्हें भी एक दिन यूँ ही जाना है
- शिनाख्त
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