अर्थ
जब ना मिले डोर कहीं हर जगह मिले शोर वही अगर हो जीवन में हर वक्त खोज तब रह जाता जीवन में कोई अर्थ नहीं । किसी पुराने दोस्त की यादें हो कोई भूली बिसरी उसकी बातें हो " क्या किया , क्यूँ किया " मिल भी जाएँ उत्तर, व्यर्थ कभी तो फिर क्या ही रह जाता अर्थ सही । ये कटु भावनाएँ , ये छल कपट घेरती विपरीत बुद्धि को बल लपट इन भावनाओं का रह जाता क्या समर्थ और अंत में बचता ही क्या अर्थ । अगर ना मिले इश्क, प्रेम, प्यार इनसे भी ऊपर है लोगों का संसार कर्म ही देता आपको अपना अर्थ तभी जब मिलता आपको अपना व्यर्थ कभी ।। - शिनाख्त