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Showing posts from October, 2024

हालात

  बताना, हैं ये कैसे हालात ना खुद का वक़्त, ना माँ-बाप का साथ बताना, हैं ये कैसे हालात ना खुद पे भरोसा, ना ऊपरवाले का हाथ बताना, हैं ये कैसे हालात ना दिल बचा, ना दिल की दवात बताना, हैं ये कैसे हालात ना खुद से तकल्लुफ़, बस लोगों की बात बताना, हैं ये कैसे हालात आँखों से देखा, पैसे से इश्क़ को मात बताना, हैं ये कैसे हालात ना आदमी के कर्म, बस पूछे जात बताना, हैं ये कैसे हालात ना नींद पूरी, ना सपने साथ बताना, हैं ये कैसे हालात अपनों के नाम पर बस ग़म है साथ काश कोई तो बताए आख़िर  मेरे ही क्यों ऐसे हालात जब नहीं किया किसी का बुरा,  तो ऊपरवाले ने क्यों छोड़ा मेरा हाथ और अब छोड़ ही दिया है मेरा हाथ,  तो क्या नहीं हुआ मैं पूरा आज़ाद तो जो बचा है मेरा हाथ,  बस कुछ और नहीं मेरे पास लेकिन ये तजुर्बा रहेगा सदा याद जो अब तू थाम ले अगर अपना साथ तो शायद तेरे पास ही है तेरा ख़ास जो बनकर कस्तूरी मृग,  तुझे अब आया याद तो जाने दे जो जाता है  छोड़ कर तेरा साथ एक सच्चा दोस्त बन जा खुद का,  तो हो जाए आबाद तेरे कर्म और तू अगर रहें साथ तो बना देंगे ऊपरवाले का ख़ास बस तू चल...

वक्त

कभी मिलूं तुमसे तो ये शाम हो,   इस दिल को कभी यूंही आराम हो। वक़्त गुजरता है, सांसें चलती हैं,   लोग गुजरते हैं, यादें ठहरती हैं। लेकिन इस ज़ालिम दुनिया में,   दफन हैं बेवक्त की बुनियादें। उसमें वक़्त से वक़्त चुराता हूं,   यूंही खुद को अकेला पाता हूं। यूंही बिखर कर रोता हूं,   और खुद को समेट चुप हो जाता हूं। पर कम्बख़्त दिल को भी काम बहुत है,   गुज़रता वक़्त भी बेआराम बहुत है। किस्से गिले शिकवे रखूं मैं यहां,   मुझे खुद से फ़ुर्सत मिले तो नाम बहुत हैं। खुद से मिला करें कभी कभी,   फूल बनकर खिला करें कभी कभी। हंस कर मिलते हो सबसे, सबके खास हो क्या?   इस मतलबी दुनिया में बेमतलब की आस हो क्या? मैं जानता हूं तस्वीरें जलाने से होता नहीं कुछ,   क्यों न भूलूं आसानी से, ज़माना साज़ हो क्या?