थक गया हूं
इस शहर की भीड़ से
हर व्यक्ति की टूटी रीढ से
हर पंछियों के टूटे नीड़ से
थक गया हूं
हर फैसले के मलाल से
किसी जवाब से, किसी सवाल से
बिना मांगे मिली मिसाल से
थक गया हूं
संसाधन छोड़ वक्त की कमी से
चारो तरफ की वो उड़ती ज़मीन से
मेरे हरेक आंसू की नमी से
थक गया हूं
व्यक्तियों की बेवजह राय से
अपने ही घर के किराए से
मैं थोड़ा और जग गया हूं
जगने के बाद भी थक गया हूं
- "शिनाख्त"
Lovely bhai
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