प्रिय
चैत्र माह में जब कोई गाय
चिलचिलाती धूप से होकर व्याकुल
जल की याद जगाती है
कुछ उसी तरह तुम्हारी याद आती है , प्रिय
जब स्टेशन से शहर को छोड़ कर जाते देखता हूँ
तब माँ बापू की याद जिस भांति सताती है
कुछ उसी तरह तुम्हारी याद आती है , प्रिय
रात को तारामंडल के नीचे
जब एकटक निहारता हूँ खुले आकाश को
तब खुद की खोज भी काफी जगाती है
उस खोज में भी तुम्हाती याद आती है , प्रिय
जब शहर-शहर , जंगल-जंगल
बंजारों की भांति घूमता है कोई
तब उसे घर की याद काफी रुलाती है
शायद मेरे दिल के घर में तुम्हारी याद आती है, प्रिय
जब समाज किसी अपराधी को
मृत्युदंड की सजा सुनाती है
तुम्हारा रूठना और मेरी गलती
मुझे वही एहसास दिलाती है
उस अपराधी की भांति मेरी आखिरी इच्छा में
तुम्हारी ही याद आती है , प्रिय
-शिनाख्त
Sabasss bhauuu
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