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Showing posts from May, 2025

संघर्ष

मेरे वक़्त को वक़्त लगेगा मेरे संघर्ष को मेरा रक्त लगेगा सर्द तूफ़ानों के बाद भी मेरा लहज़ा नरम और हाथ सख़्त लगेगा...                                                             - शिनाख्त  

मेरे सवाल

कई लोगों से बहुत सवाल हैं उनका न होना मेरे कुछ मलाल हैं  मैंने छोड़ दिया उन्हें या उन्होंने मुझे, यही बातें मेरे ज़हन में एक बवाल हैं और भी क्या कुछ कमाल है, उस दोस्ती-प्यार की न कोई मिसाल है रात भर का वो मेरा मलाल है आजकल मेरा ऐसा ही बुरा हाल है लिखते रहना उनके बारे में, जो फ़िक्र नहीं खाते किसी सहारे में यूं ही दुखी रहना बीते किनारे में ये कैसा दिल का अजीब हाल है दिल को रोना और भी, लोगों को खोना और भी महबूब का न होना और भी मेरे ज़माने के दुख, यही सवाल हैं।                                                   - शिनाख्त  

मेरा अकेलापन

सच, सच... हाँ सच और कुछ जवाब — कि क्यों मैं लोगों से इतना मिलकर नहीं रहता, क्यों मैं लोगों को इतना सहता, क्यों मैं करता हूँ अकेलापन दूर करने की कोशिश, क्यों मैं लोगों के लिए इतना अच्छा रहता ? सच तो ये है कि — मैं किसी पर भी पूरा भरोसा नहीं करता। एक डर लगता है, कि सामने वाला छोड़ जाएगा कुछ समय बाद। मैं फिर अकेला हो जाऊँगा कुछ समय बाद। जब बचपन में अपनों ने साथ छोड़ दिया, तो किस पर पूरी तरह भरोसा करूँ — कुछ समय बाद। अभी व्यस्त हैं, वो हँस रहा है मुझसे, वो अपना रहा है मुझे, मुझे वो कर देगा पराया कुछ समय बाद। पर मैं भी शायद पूरी तरह अच्छा नहीं हूँ, लेकिन कम से कम, पूरी तरह सच्चा तो हूँ। कोई फिर मुझसे बात भी न करेगा, वो काम के बाद ऐसा रिश्ता फिर न चलेगा। अपना रास्ता निकालने पर, मुझे मेरे रास्ते पर अकेला छोड़ देगा, खुद टूट जाने से अच्छा, वो मुझे तोड़ देगा। मैं लोगों के हाथ का खिलौना बनकर रह जाऊँगा, एक मूर्ख की तरह वही गलती फिर दोहराऊँगा। लोगों से फिर दोस्ती करूँगा, और फिर मुँह की खाऊँगा। लोग चले जाते हैं मुझे तन्हा छोड़ कर, ख़ुद जुड़ने के लिए मुझे तोड़ कर। इसलिए एक हल्की दूरी रखता हूँ और एक श...

At IITs, we train students in quantum physics — but not how to ask, ‘Are you okay?’

I don't have words to put it out so i shared the article written by a person who put it out as it has to be . If at the end of day you are not happy then you are a fool. There’s a kind of silence that hostel rooms never forget. It settles in long after the noise fades. After the roommate goes home for a long weekend. After the last WhatsApp ping. After the mess plate goes untouched. It stays. It thickens. And sometimes, it wins. A 22-year-old boy died by suicide in MMM Hall, IIT Kharagpur. That sentence should be enough to halt the nation. But it won’t. We’ll glance at the headline, mumble something about pressure, and scroll on. The nation has built up calluses where its conscience should be. I’m an alumnus of the same IIT and lived in Patel Hall. I know those corridors. I know the loneliness that blooms at 2:00 am like mould on ambition. I know the sound of a ceiling fan that suddenly feels too loud. I know how it feels to walk among 9-pointers and feel like a typo in your own st...