मेरा अकेलापन

सच, सच... हाँ सच और कुछ जवाब —

कि क्यों मैं लोगों से इतना मिलकर नहीं रहता,
क्यों मैं लोगों को इतना सहता,
क्यों मैं करता हूँ अकेलापन दूर करने की कोशिश,
क्यों मैं लोगों के लिए इतना अच्छा रहता ?

सच तो ये है कि —

मैं किसी पर भी पूरा भरोसा नहीं करता।
एक डर लगता है,
कि सामने वाला छोड़ जाएगा
कुछ समय बाद।
मैं फिर अकेला हो जाऊँगा कुछ समय बाद।
जब बचपन में अपनों ने साथ छोड़ दिया,
तो किस पर पूरी तरह भरोसा करूँ — कुछ समय बाद।

अभी व्यस्त हैं, वो हँस रहा है मुझसे,
वो अपना रहा है मुझे, मुझे वो कर देगा पराया
कुछ समय बाद।

पर मैं भी शायद पूरी तरह अच्छा नहीं हूँ,
लेकिन कम से कम, पूरी तरह सच्चा तो हूँ।

कोई फिर मुझसे बात भी न करेगा,
वो काम के बाद ऐसा रिश्ता फिर न चलेगा।
अपना रास्ता निकालने पर,
मुझे मेरे रास्ते पर अकेला छोड़ देगा,
खुद टूट जाने से अच्छा, वो मुझे तोड़ देगा।

मैं लोगों के हाथ का खिलौना बनकर रह जाऊँगा,
एक मूर्ख की तरह वही गलती फिर दोहराऊँगा।
लोगों से फिर दोस्ती करूँगा,
और फिर मुँह की खाऊँगा।

लोग चले जाते हैं मुझे तन्हा छोड़ कर,
ख़ुद जुड़ने के लिए मुझे तोड़ कर।
इसलिए एक हल्की दूरी रखता हूँ और एक शक भी,
कि कोई इंसान अच्छा नहीं, चाहे मुँह पर बोलकर।

मैं चाहता हूँ,
कि दुनिया में किसी का कुछ हो पाऊँ।
वरना क्या अर्थ इस जीवन का,
अगर रिश्ते ही न निभा पाऊँ?

माँ-बाप के अलावा कोई सगे न मिलेंगे,
लोग अच्छे मिलेंगे पर सच्चे न मिलेंगे।
और अगर गलती से मिल भी जाएँ, तो संभाल कर रखना —
लेकिन डरता हूँ, पहले जैसे दुबारा हाल मिलेंगे।

ये कैसी कशमकश है...
लोगों को पास भी रखना चाहता हूँ संभाल कर,
और डरता भी हूँ, कहीं पीछे से न मिल जाए वार अब।

कुछ लोगों से दोस्त जैसा मिलन है,
और कुछ लोग दोस्त के नाम पर कलंक है।
और कुछ दोस्त जान से भी ज़्यादा अज़ीज़,
वही लोग दिल के सबसे क़रीब हैं।

कुछ दोस्ती-रिश्ते पैसे से भी खरीदें हैं
ज्यादातर लड़कियों को पैसे से खरीदा है
कुछ लड़कों को भी पैसे से खरीदा है 
जिन लड़कियों को न खरीदा पैसे से उन्हें प्यार
जो लड़के नहीं बिकते बाजारों में, वो यार 

कोई ग़म नहीं, जो लोग मिले तो सही,
अच्छा वक़्त कटा तो सही।
अच्छे नहीं हुए रिश्ते, कोई ग़म नहीं,
जिसका जितना साथ मिला, वो सही।
कल अच्छा न हो रिश्ता — कोई ग़म नहीं,
आज अच्छा है, तो सही।

पर कुछ सच्चे दोस्त मिल जाते हैं,
तुम जैसे भी हो, उनको ऐसे ही पसंद आते हैं 
कितना भी कुचल दो फूलों को,
मुरझाए फूल — एक बार तो महक जाते हैं।

                                                          - शिनाख्त 

Comments

Popular posts from this blog

बदलाव

प्रेम का अर्थ

STUDENTS AND MENTAL HEALTH