बेसनम कर्म
कोई उम्मीद भर नहीं आती
प्यार की कोई चीज़ नज़र नहीं आती।
कोई मुझसे भी प्यार करे इस वक़्त —
ऐसी कहीं से कोई ख़बर नहीं आती।
आती थी, एक हवस की आंधी —
अब वो आंधी दिल में नहीं आती।
कोई सनम न मिलेगा मुझे,
कुछ साल यूँ ही अकेला रहूँगा मैं।
ख़ुद को लोहा बनाने के लिए,
कुछ साल आग में जलूँगा मैं।
यह कैसी नियति का विधान है,
मैं मेहनत के समय तन्हा रहूँ,
और जब मिल जाए मेहनत का फल —
उसी ज़िन्दगी में लोगों से भरा रहूँ।
क्या ही कुछ कर पाएँगे इस बात पर,
बस ज़हर का कड़वा घूँट पिएँगे हालात पर।
थोड़ा रोएँगे अपनी किस्मत पर भी,
पर खड़े हो ही जाएँगे अपने पाँव पर।
– शिनाख्त
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